वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने के लिये अपनाये जा रहे लॉकडाउन से यों तो समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है। विकसित हो या विकासशील सभी देशों को इस समय ध्वस्तअर्थव्यस्था को सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण रातोंरात काम से बाहर हुये 40 क रोड़ के करीब भारतीय मजदरों पर गरीबी का संकट आ पड़ा है। इसके अलावा कृषि हो या उद्योग अथवा व्यापारिक क्षेत्र सभी को इस समय संजीवनी की जरूरत है। ऐसे में अभी लम्बे समय तक सरकार की परेशानी कम होने की संभावना नही हैं। विशेषज्ञों की माने तो भारत में लम्बे समय तक आर्थिक सुधार के प्रयास किये जाने जरूरी होंगे।
(सुधीर त्रिपाठी) ।
कोरोना महामारी के कारण दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत में भी लॉकडाउन लागू है। अपने देश में लागू लाकडाउन -2 के समाप्त होने की अवधि अब नजदीक ही है। जिस तरह राज्यों में अभी संक्रमण के आंकड़े हैं उससे तो अभी यह कह पाना सम्भव नही होगा कि इस बार का लॉकडाउन भीअपनी निर्धारित समय सीमा पर खत्म हो जायेगा। इसी आंशका के चलते अब देश की आर्थिक स्थिती पर तरह तरह से विश्लेषण होना प्रारम्भ हो चुके हैं। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था पहले भी ठीक नही कही जा रही थी। कालेधन को बाहर लाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी की मार झेल रहे देश के आर्थिक हालात धीरे धीरे संभलने की ओर थे कि कोविड-19 जैसी विश्वव्यापी महामारी ने अपनी चोट कर दी। इस बार इस चोट ने तो बुरी तरह से पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। कोरोना से बचने के कारण सरकार द्वारा किये गये सम्पूर्ण लॉक डाउन के कारण सभी संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में कामकाज बंद हो गये और देश का एक बड़ा तबका जिसे मजदूर कहते हैं वो बेरोजगार होकर महानगरोें से गांवों की ओर कूच कर गया। बेरोजगार हुये मजदूर वर्ग की संख्या आईएलओ की रिर्पोट के अनुसार 40 करोड़ के आसपास आंकी जा रही है। ऐसे में इतनी बड़ी जनसंख्या की बेरोजगारी से देश के आर्थिक हालात क्या होंगे यह सोचने को मजबूर कर रहे हैं।
एक डॉट बिन्दु के 2000 वे हिस्से से भी छोटे वायरस कोविड-19 जिसे हम अपनी नंगी अांख से नही देख सकते हैं उस वायरस ने अपनी ताकत एवं प्रकोप से पूरी दुनिया को हिला दिया है। सभी अपने को बचाने का तरह तरह से प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास में भी उन्हें आशातीत सफलता नही मिल रही है। कोई वैक्सीन न होने के कारण सभी देशों ने लॉकडाउन का सहारा लिया। यहीं से उनके ऊपर कोरोना के बाद आने वाले संकट के बादल घिर गये। भारत में भी लागू किये गये लॉकडाउन से इसके संक्रमण को बढ़ने से रोकने में बड़ी सफलता मिली। ऐसा माना जा रहा है कि इस प्रकार की रणनीति से हम जल्द ही कोरोना से विजय प्राप्त कर लेंगे। लॉकडाउन को समय की जरूरत माना जा रहा था और सभी ने सरकार के इस निर्णय का भी स्वागत किया। लम्बे समय तक चल रहे इस लॉकडाउन को लेकर अब जो समीक्षा हो रही है वह भी चिंता में डालने जैसी लग रही है। माना जा रहा है कि पूरे विश्व को कोरोना महामारी एवं लॉक डाउन के कारण आर्थिक बदहाली का सामना करना पड़ेगा। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ ) के महानिदेशक गाय राइडर द्वारा जारी एक रिपोर्ट में जो तथ्य सामने लाये गये हैं वो बेहद ही अहम है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरी दुनिया में 2 अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं जो पहले वैश्विक मंदी से प्रभावित थे तो अब लॉक डाउन ने उन्हें एक तरह से बेरोजगार कर दिया है। इन्ही में से 40 करोड़ लोग भारतीय हैं जो काम बंद होने के कारण एक तरह से बेरोजगार हो गये तथा शहर से गांवों की ओर लौट रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 75 वर्षो में ऐसा पहली बार मौका आया है जब कमजोर दिख रहे राष्ट्रों की मदद के लिये अन्य राष्ट्रों को आगे आने की जरूरत है। 22 मार्च के बाद अचानक बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ा जो बढ़ता ही गया। यह बेहद चिंताजनक है। लॉकडाउन से उत्पन्न हुये हालात में सबसे ज्यादा प्रभावित दैनिक मजदूरी करने वाले लोग रहे। जिन्हें त्वरित रूप से काम से अलग होना पड़ा। कुछ समय इंतजार के बाद लाखों की संख्या जब अपने अपने घरों की तरफ भूंखी प्यासी कंूच कर गयी तो हालात तनाव भरे हो गये। हमारी सरकार ने ऐसे लोगों को जगह जगह खाना मुहैया कराने का प्रयास किया तथा इस मुहिम में तमाम समाज सेवी संगठन भी आगे आये पर 1.35 अरब की आबादी वाले इस देश में यह प्रयास भी एक तरह से नाकाफी साबित हो रहे हैं। अभी तो यह शुरूआत है। आगे इन्ही लोगों को जिन्हें आज खाना देकर सहयोग की बात कही जा रही है उनके रहने ठहरने, चिकित्सा एवं बच्चों की शिक्षा आदि विषय सहारा देना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। इस सयम देश के लगभग हर शहर में सामुदायिक रसोई एवं सामाजिक संस्थाओं के प्रयास से लम्बी लम्बी पंक्ती में खड़े लोगों का दर्द बांटने का प्रयास हो रहा है पर सही मायने में क्या यही उनका हक है। आजादी के 73 वर्ष बाद भी देश के एक ऐसे तबके की सुरक्षा के यही इंतजाम हो पाये जो देश की अर्थव्यवस्था में 45 प्रतिशत का सहभागी है। आरबीआई के गर्वनर शशिकांत दास द्वारा बीते वर्ष के अंत में दिये गये एक ब्यान के मुताबिक वर्ष 2019 में भारत में बेरोजगारी 45 सालों में सबसे अधिक स्तर पर थी। पिछले साल के अंत में देश के आठ प्रमुख क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पादन 5.2 प्रतिशत तक गिर गया था यह भी बीते 14 सालों में सबसे खराब स्थिती में था। भारत में असंगठित क्षेत्र के रोजगार का भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ा योगदान है जिसका प्रतिशत 45 है। इसी पर लॉकडाउन में मार पड़ी है। लाखों लोगों का रोजगार रातों रात छिन गया। छोटे-छोटे उद्योगों में काम करके अपनी जीविका चलाने वालों के समाने लॉक डाउन के कारण जो संकट खड़ा हुआ उससे या तो उनका रोजगार चला गया या फिर वह आगे कम पैसे में काम करने को मजबूर होंगे। मजदूरी के बाद कृ षि का क्षेत्र ऐसा माध्यम है जहां से देश की आर्थिक व्यवस्था में 256 बिलियन डालर का योगदान होता है। देश की कुल आबादी का 58 प्रतिशत हिस्सा कृषि कार्य पर निर्भर है। पर इस दौर में वह कृषक भी परेशान है। इधर सरकार ने 1.70 लाख करोड़ के राहत पैकेज इस आपदा में देने का निर्णय लिया है। कहा जा रहा है कि कोरोना आपदा के समय सरकार की मदद का यह पैकेज दुनिया के अन्य देशों से बेहद कम कम है। यह पैकेज गरीबों को मदद करने,उन्हें भोजन उपलब्ध कराने एवं दैनिक मजदूरी करने वाले मजदूरों एवं किसान की मदद हेतु बताया गया है। किसान सम्मान निधि के माध्यम से किसान को 2-2 हजार की मदद किये जाने निर्णय लिया गया है। पर इस देश की रीढ़ एवं अन्नदाता कहे जाने वाले किसान की मदद सरकार द्वारा इस समय पर्याप्त नही कही जा सकती। पूरी तरह से मौसम पर निर्भरता वाले कृषि कार्य में लगे कृषकों का दर्द यदि सुने तो उन्हें उनके कार्य से परिवार के सदस्यों सहित दैनिक मजदूरी भी नही मिल पाती है। ऐसे में उनके लिये सरकार को बेहतर नीति बनाने की अपेक्षा की जा रही है। इस प्रकार चौतरफा सरकार के लिये परेशानी का दौर है। अभी तो कोरोना के उल्मूलन के लिये प्रयास हो रहे हैं। हर हाल में देश कोरोना संक्रमण से मुक्त करने की कबायद चल रही है। इसी के चलते पिछले एक माह से भी अधिक से सम्पूर्ण देशबंदी का हर देशवासी समर्थन कर रहा है। इस इसके साथ ही लोगों को इस बात की भी अब रह रह कर चिंता सता रही है कि कोराना आपदा में खत्म हो गये व्यापार एवं रोजगार आखिर कै से बहाल हो सकेंगे। सरकार के सामने आने वाले समय में खासी परेशानियों है। जिसमें उसके समक्ष असंगठित से लेकर संगठित क्षेत्र के श्रमिको के लिये रोजगार सृजन की चुनौती मुख्य मानी जा रही है।