- - वैश्विक महामारी बन चुकी कोविड-19 बिमारी को लेकर यूं तो पूरा विश्व परेशान है एवं असहाय सा दिख रहा है। भारत में भी स्थिती बेहतद तनावपूर्ण है। सरकार द्वारा समय पर लिये गये सूझबूझ भरे निर्णय के कारण हांलाकि हम आज उस स्थिती से काफी बचे हुये हैं जिसके चलते अन्य देशों में हाहाकार की स्थिती है। अमेरिका, इटली, स्पेन जैसे देशों में संक्रमण के तेजी से बढ़े ग्राफ के मुकाबले में अपने देश के आंकड़ों को संतोषजनक कहा जा सकता है पर अभी और भी एतिहात बरते जाने की आवश्यकता है। इस जंग को जीतने के लिये देश के हर नागरिक की अभी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। 21 दिन के लॉकडाउन में हुआ तमाम आर्थिक नुकसान देश के नागरिकों के की जान से ज्यादा नही है। ऐसें में फिर शुरू हो रहे 18 दिन के लॉकडाउन के लिये भी हमें खुद को समर्पित करना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति साबित होगी। वैसे कहा जाता है कि बीमारी के खात्मे के लिये यदि दवा कड़वी भी पीनी पड़ जाये तो पी लेना चाहिये।
(सुधीर त्रिपाठी)
पूरी दुनियां में अपने संक्रमण के रूप में तेजी से पैर फैला रहे कोविड-19 की अपने में देश आने की आहट को सुन सरकार द्वारा उठाये गये सावधानी भरे कदमों के क्रम में पिछले महिने यानी 25 मार्च 2020 को देश में लागू किये गये अभूतपूर्व 21 दिन के लॉकडाउन के कारण चौतरफा बंदी के दृश्य ही देख जा रहे हैं। केवल आकस्किमक सेवाओं को छोड़े सभी बढ़े कारखाने हों या छोटे व्यापार, संगठित क्षेत्र हो या असंगठित सभी तरफ बंदी। मालिक से लेकर मजदूर तक सभी घरों में बद होकर हर दिन की रिपोर्ट विभिन्न संचार माध्यमों से घर पर ही आंकड़े लेते हुये अपने देश की तुलानात्मक स्थिती पर नजर गढ़ाये हैं। इस दौरान समूचे भारत में संक्रमण का आंकड़ा 10 हजार नही छू पाया जबकि इस बीमारी से असममय काल के गाल में समाने वालों की संख्या भी ज्यादा नही है। ऐसे में तमाम विश्लेषणों में यह प्रमाणित हो रहा है कि हमने लॉकडाउन एवं सोसल डिस्टेंसिग की दम पर 10 लाख के करीब मामलों को संभावित संकमण से बचा लिया है। यह आंकड़ा अपने आप में हमें सफलता की राह में चलने जैसी स्थिती को सिद्ध कर रहा है। यह भी लग रहा है कि यदि इस राह चला जाय तो हम उस संभावित विकराल स्थिती से बच सकते है जिसमें विश्व के तमाम देश आज बुरी तरह से फंस चुके हैं एवं अपनी तबाही का मंजर खुद देख रहे हैं।
हमारे देश के प्रधानमंत्री यों ही राष्ट्र को संवोधित नही करते बल्कि देश से मुखातिब होने को लेकर कोई न कोई बढ़ा कारण अवश्य होता है। देशवासी इसे उनके पिछले कई संवोधनों के माध्यम से अच्छी तरह से समझ गये है। कोरोना की आहट को लेकर पहली बार देश के सामने 19 मार्च को जब वह आये तो उन्होने देशवासियों से एकजुटता की अपील करते हुये इस बीमरी से बचने के लिये जहां 9 सूत्रीय संदेश दिया। जिसमें बुर्जुगों एवं बच्चों की देखभाल को प्रमुखता से करने, बेबजह अस्पताल न जाने आदि का आवाहान किया था। इसके अलावा 22 मार्च को पूरे देश में जनता कर्फ्यू के दौरान घरों में रहने तथा शाम 5 बजे कोराना से लड़ रहे चिकित्सकों, सफाईकर्मियों, पुलिसकर्मियों के सम्मान में ताली एवं थाली बजाने का आवाहान किया। प्रधानमंत्री के इस आवाहान पर देशवासियों ने जनता कफर््यू मेंसहभागिता कर यह संदेश दे दिया कि देश हित में वह सरकार के हर निर्णय के साथ है। शाम को चिकित्सा कर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों का तालियों से स्वागत भी हुआ। देश की एकता को समझ प्रधानमंत्री ने वक्त की नजाकत को भांप अपने अगले राष्ट्र के सम्बोधन यानि 24 मार्च के माध्यम से 25 मार्च 2020 से अगले 21 दिन का देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किये जाने का निर्णय देश को सुना दिया। यह निर्णय किसी कड़वी औषधि से कम नही था। इस कठोर एवं देशहित में लिये गये निर्णय को जनता ने पूरे 21 दिन तक अक्षरश: माना। सोशल डिस्टेंसिग का पालन किया। सभी उद्योग व्यापार, काम काज, शिक्षण संस्थाये, बाजार, मॉल, रेस्टोरेंट, धार्मिक स्थल आदि पूरे समय बंद रहे। शक्तिपर्व नवरात्र भी इस दौरान निकला मगर किसी भी मंदिर में भक्त दिखायी नही दिये। देश की सभी मस्जिदों में नमाज पर पावंदी रही। सरकार की इस देशहित की पावंदी का यों तो आर्थिक क्षेत्र में भारी असर पड़ा। सभी सरकारी एवं गैर सरकारी कामकाज पूरी तरह से बंद रहे। सरकार की लोककल्याणकारी योजनायें पूरी तरह से ठप्प हैं। कामकाज न होने के कारण कई तबके पूरी तरह से तवाही की दशा में भी हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में दिहाड़ी करने गये करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार होकर सड़कों पर आ गये। उनके सामने खाने तक का संकट पैदा हो गया। तमाम मिलोें एवं कारखानों में काम कर रहे लोग अचानक घर बैठ गये। या यों कहें चौतरफा दिक्कतें ही दिक्कते देश भर में दिखी तथा आज भी दिख रही हैं। नोयडा एवं गाजियाबाद तथा दिल्ली के तमाम स्थानों, गुजरात एवं राजस्थान में काम कर रहे श्रमिक सरकार के निर्णय के कारण अचानक काम से विरत हो गये। ऐसे में उनके सामने खाने का संकट खड़ा होगया। सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का असर थोड़ी देर से हुआ पर धीरे धीरे सभी सामान्य सा होता गया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इसी बीच 3 अप्रैल 2020 ट्वीट के माध्यम से आवाहान किया कि 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट के लिये घरो के प्रकाश को बंद कर कोरोना योद्धाओं के सम्मान में दिये जलायें या टार्च से प्रकाश करें। इस अपील पर भी देशवासी खरा उतरे और पूरे देश में पहली बार ऐसा हुआ कि अप्रैल के महिने में दीपावली जैसा दृश्य लोगों ने अपनी अपनी छत एवं बालकनी से देखा। पीएम की अपील का जनता में किस कदर असर होता है यह हाल में कई बार देखा गया है। यही वो ताकत है जो हमारी सरकार को इस बीमारी से लड़ने की ऊर्जा दे रही है। इधर सरकार ने कोरोना के संक्रमित मरीजों के उपचार एवं उनके क्वारीटाइन करने के लिये कमर कसी तो वही प्रधानमंत्री के आवाहान के बाद हमारी समाज सेवी संस्थाओं एवं तमाम सक्षम लोगोें ने इस दौर में उनकी मदद के लिये अपने हाथ बढ़ाये जो खुद को इस अवस्था में निरीह मानने लगे हैं। सरकार के आवाहान पर जहां सरकारी मशीनरी अपना काम जनधन एकाउंट के माध्यम से कुछ मदद करने में लगी है तो वही तमाम समाज सेवियों ने खुद को संक्रमण की संभावित चिंता को दरकिनार करते हुये गरीब, असहाय, बेरोजगार मजदूरों की मदद के लिये अपने हाथ बढ़ाये। इन 21 दिनों में जिस प्रकार जगह मदद करते स्वयं सेवी संगठन दिखे उससे यह प्रमाणित हुआ कि यह देश आज भी अपनी प्राचीन परंम्परा को विरासत मानकर सजोये हुये हैं। जरूरतमंदों की मदद के लिये बिना किसी संकोच लोगों ने जहां खाने पीने की सामग्री उनके घरों तक पहुंचायी तथा जहां नही पहुंच पायी उनकी मदद के लिये सरकार के राहत कोष में लगातार दान देने वालो की झड़ी लगी हुयी है। इधर सरकार ने भी इस महामारी से लड़ने का लम्बे समय का प्लान तैयार करते हुये 15 हजार करोड़ पैकेज खर्च करने का निर्णय लिया है। यह बजट कोरोना वायरस से जुड़ी टेस्टिंग,कई उपकरण,आइसोलेशन वार्ड, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर तथा मेडिकल एवं पैरामेडिकल स्टाफ के प्रशिक्षण आदि पर खर्च किया जायेगा। देश के सभी राज्यों के प्रयासों से जगह जगह पूरी नाकेबंदी के तहत कोरोना के संक्रमित मरीज समय रहते चिहिन्त किये जा रहे हैं तथा उन्हें सीधे क्वारीटाइन किये जाने की त्वरित व्यवस्था के चलते उस संभावित विकराल स्थिती पर नियंत्रण पा लिया गया जिसके परिणाम भयानक आने को लेकर हम सभी परेशान थे। विश्लेषण के अनुसार आज की स्थिती में हमने सोशल डिस्टेंसिग एवं मास्क पहनने तथा लॉकडाउन को मानने से 10 लाख के करीब के संक्रमण संख्या को बचा लिया है। आज की स्थिती में हमारे यहां संक्रमित मरीज 9 हजार के आस पास हैं यह केवल हमारे समर्पण और दृढ़ संकल्प के कारण ही हो पाया है। 21 दिन के लॉकडाउन की समय सीमा 14 अप्रैल को पूरी होनी थी इसको लेकर नागरिकों को लॉकडाउन खोले जाने की संभावना थी पर प्रधानमंत्री के एक और सम्बोधन में इसकी समय सीमा 03 मई तक बढ़ाये जाने की आवश्यकता बताते हुये घोषणा की गयी तो एक बार फिर लोग देशवासी लॉकडाउन में स्थिर से हो गये। अभी 21 दिन के लॉकडाउन के समय एक एक दिन मुश्किल से कटे लोगों को आशा थी कि कुछ समय बाद सब सामान्य हो जायेगा। व्यापारियों को आश थी कि धन्धा पानी शुरू हो जायेगा तथा वही श्रमिकों को काम की आश बंधी थी तो वही लम्बे समय से बंद तमाम होटल रेंस्टारेंट मालिकों को खुलने की, विद्यार्थियों को स्कूल कालेज की आश थी। पर वह सब अगले 18 दिनों तक के लिये फिलहाल यथास्थिती में रहेंगे। हालांकि जान है तो जहान की तर्ज पर लोग इसे भी स्वीकार करेंगे। वैश्विक स्तर पर रोज जो खबरें आ रही हैं उस कठिनाई से बचने के लिये यह जरूरी भी है। यदि बचाव से बेहतर परिणाम सम्भावित हैं तो फिर इसमें भला हर्ज क्या है? कुछ देशों ने लॉकडाउन के ऊपर अपनी अर्थव्यवस्था को रखा तो आज वह इस बीमारी के चलते घुटने टेकने को मजबूर हैं। हमने अर्थ से ज्यादा जन पर ध्यान दिया तो आज हम उनसे बेहतर स्थिती में हैं। इसके पीछे देश के हर नागरिक का मजबूत इरादा ही मुख्य आधार साबित हो रहा है।