सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के पिता आंनद सिंह विष्ट अब परलोकवासी हो गयें हैं। उनके निधन से दो राज्यों को अपूर्णनीय क्षति होना कही जा सकती। पिता के दिवंगत होने के समय देश कोराना महामारी में फंसा है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ द्वाराअपना कर्तव्य इस लड़ाई में लगातार काम करने का बताया गया है। तथा पिता के अंतिम संस्कार में ना जाने का निर्णय लोक कल्याण के लिये उनके त्याग की सीमा कहा जा सकता है।
(सुधीर त्रिपाठी)।
उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह विष्ट ने सोमवार सुवह 11 बजे एम्स हॉस्पिटल दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनके निधन से उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड में शोक की लहर दौड़ गयी। वह लम्बे समय से किडनी एवं लीवर के चलते अस्वस्थ थे जिसके चलते उनका उपचार चल रहा था। 89 वर्ष की लम्बी जीवन यात्रा में स्व. सिंह अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। 1991 में वन विभाग से रेंजर पद से सेवा निवृत होने के बाद वह अपने पृत्रक ग्राम उत्तराखण्ड स्थित पौढ़ी गढ़वाल के पंचूर गांव में ही रह रहे थे। जीवन में अनुशासन को अहम मानते हुये उन्होने हमेशा अपने परिवार को चुनौतियों से लड़ने एवं एवं कर्तव्य मार्ग में कभी पीछे न होेने सभी को प्रेरणा दी। पिता के परलोकवासी होने की खबर मिलने के समय मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कोविड-19 के फैले प्रकोप को थामने एवं उसके उन्मूलन के लिये बनायी जाने वाली रणनीति के सम्बन्ध में जरूरी बैठक राजधानी में ले रहे थे। इस सूचना के बाद भी वह बिना असामान्य हुये अपने कर्तव्य मार्ग पर चलने की सोच के तहत बैठक करते रहे तथा बाद में बैठक सम्पन्न होने के बाद वह अपने कक्ष की तरफ गये।
गढ़वाली क्षत्रिय परिवार से नाता रखने वाले के स्व.आंनद विष्ट का दाम्पत्त्य जीवन सावित्री के साथ जुड़ा। जिसके बाद 3 बेटियों एवं 4 बेटे उनके जीवन में आये। जिनमें से एक अजय सिंह हुये जो आगे चलकर गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर के महंत बनने के बाद योगी आदित्यनाथ हुये। अपने प्रारम्भिक शिक्षा काल में ही जब अजय पास के ही गांव से नाता रखने वाले महंत अवैद्यनाथ के सम्पर्क में आये तो आनंद विष्ट को यह आभास नही हो पा रहा था कि उनका बेटा कुछ समय बाद उनकी गुरू दक्षिणा लेकर अपना जीवन संयासी की तरह बिताने का संकल्प ले लेगा। परिवार में सभी संतानों को संस्कार देते हुये उनके कर्तव्य का बोध कराने एवं लोकमंगल के लिये जीवन जीने की प्रेरणा तो विष्ट दंम्पति ने हमेशा दी पर अंदर से यह चाह क भी नही रही कि वह इस तरीके से अपना जीवन बदल दे। स्नातक की शिक्षा गढ़वाल से करने के बाद गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ के सम्पर्क में आने के बाद गोरखपुर में जब योगी आदित्यनाथ ने संन्यास लिया तो उनके माता पिता ने उनको बहुत समझाने का प्रयास किया पर दृढ़ संकल्पी योगी ने अपने जीवन का सार बताते हुये इसी राह पर चलने का आर्शीवाद मांगा था। उसके बाद पूरा परिवार गढ़वाल ही रहा और योगी अपने मिशन की तरफ लगातार कूच करते गये। प्रखर हिन्दुवादी विचारधारा एवं ओजस्वी वक्ता योगी आदित्यनाथ जब 26 वर्ष की उम्र में पहली बार सांसद बन गये तो परिवार में पिता आनंद सिंह विष्ट एवं सभी भाईयों को बेहद प्रसन्नता हुयी। कभी किसी राजनैतिक कार्यक्रम में पहुंचे परिजनों से योगी की मुलाकात हो गयी तो अलग पर वह एकाकी रूप से कभी परिवार के लोगों से मिलने नही गये। 5 बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ जब 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तथा कुछ समय बाद एक कार्यक्रम में बिजनौर गये। उक्त कार्यक्रम में उनके पिता को बुलाया गया था। जिस पर पिता अपने पोते अविनाश विष्ट के साथ पहुंचे थे। वह उक्त कार्यक्रम को देख खासे प्रसन्न एवं सुखद अनुभूति से अभीभूत थे। उनकी प्रसन्नता उस सयम चरम पर दिखी जब आयोजकों ने उक्त दिवस पर सम्मानित किये जाने वालों में उनका नाम बोला। कार्यक्रम स्थल पर जब आयोजकों द्वारा कुछ विशिष्ट जनों का सम्मान कराया गया तो उसमें उनके पिता आनंद सिंह विष्ट का भी सम्मान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। यही वो पल था जब योगी और आनंद लम्बे समय बाद एक दूसरे के आमने सामने थे। अपने बेटे को मुख्यमंत्री के रूप में देख उसके हाथों सम्मान पाकर पिता अतिभावुक हो गये थे तो योगी भी अपने को रोक नही पाये थे तथा उनक ी आंखे भी भर आयीं थी। शायद पिता आनंद सिंह को यह लगा होगा कि वह भी नही समझ पाये थे कि गोरखनाथ मठ के आशीष रूपी पड़ाव के बाद अभी मंजिले आगे काफी है। उसी सफरनामे में देश के सबसे बढ़े सूबे की बागडोर उनके बेटे को दी गयी है। विष्ट परिवार के तीन अन्य बेटे सरकारी सेवाओं में उत्तराखण्ड में ही सेवारत है। घर ही बच्चों की संस्कारशाला है तथा माता पिता ही पहले शिक्षक है यह कथन इस परिवार के बारे में जानकारी करने पर सही साबित होते हैं। जहां पर किसी भी सदस्य को इतने दिनों बाद भी इस बात का अहकार नही आया कि उसके परिवार का एक सदस्य एक बड़े सूबे का मुखिया है। जीवन भर सादा एवं अनुशासित जीवन जीने वाले आनंद विष्ट ने हमेशा परिवार के सभी सदस्यों को संतुष्टि एवं संयमी होने की ही सीख दी। यही परिणाम रहा कि इतने दिनों कभी आरोप प्रत्योरोप की स्थिती योगी जी के लिये उत्पन्न नही हुयी। संस्कारों का ही नतीजा है कि तमाम व्यवस्था होने के बाद भी पूरा देश जानता है कि उ.प्र. के मुखिया का रहन सहन कैसा है। यह सब यों ही नही आ जाते बल्कि इनके पीछे प्रारम्भिक संस्कार एवं प्रेरणायें भी रहती हैं। एम्स में पिछले काफी समय से भर्ती होने के बाद भी प्रदेश के मुख्ममंत्री योगी आदित्यनाथ उनसे मिलने अपने कर्तव्य बोध एवं प्रदेश की वर्तमान जटिलताओं के चलते नही जा पाये। वर्तमान हालात में पिता के पार्थिव दर्शनों एवं अंतिम संस्कार में शामिल न होने का जो कठोर निर्णय इस दुखद घड़ी में मां को लिखे पत्र में योगी आदित्यानाथ ने लिया है वह कम लोग ही कर सकते हैं। कोरोना संकट से जूझ रहे प्रदेशवासियों के बचाने को प्राथमिकता में लेना एवं इसे ही कर्तव्य मानना सूबे के मुखिया के समर्पण का उदाहरण है।