कोरोना गया जेल!

- वैश्विक महामारी के रूप में उभरे कोराना वायरस के संक्रमण का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसने अब जेल में भी दस्तक दे दी है। आगरा, इंदौर एवं अब मुम्बई की आर्थर रोड जेल में जिस कदर कोरोना से संक्रमित मरीज सामने आये उससे तो एक नया संकट खड़ा हो गया। आर्थरोड जेल में 77 बंदियों एवं 26 अधिकारियों की कोरोना पॉजिटिव रिर्पोट ने हिला कर रख दिया। देश की सभी जेलों में क्षमता से अधिक रह रहे बंदियों के बीच कोरोना पहुंचने के बाद तो वह प्रयास भी नही हो पायेंगे जिसे सोशल डिस्टेंसिंग कहते हैं। न्यायालय बंद है इस कारण कई बंदियों की जमानती प्रक्रियायें भी ठप्प है तो फिर  ऐसे में वहां बंद लाखों बंदियों के जीवन पर उमड़ रहे सम्भावित खतरे को कैसे खत्म किया जाये यह  भी चिंता का विषय है।
(सुधीर त्रिपाठी) ।


जी हां कोरोना अब जेल पहुंच गया है। हां ,मगर इसका मतलब यह नही कि अब वह आप पर हमला नही क रेगा। बल्कि वहां पहुंच कर भी वह अपने काम को अंजाम देता रहेगा। हां यह अवश्य है कि वह जेल पहंचकर वहां पर बड़ी तेजी से अपना सामा्रज्य फैलाने का प्रयास करेगा। मुम्बई के आर्थररोड जेल से बाहर आयी कोरोना खबर के बाद तो एक तरह से हलचल मच गयी। वहां की जेल में बंद एक बंदी को कोरोना पॉजिटिव होने के बाद जब 200 और सैम्पल लेकर जांच करायी गयी तो रिर्पोट बेहद ही चौकाने वाली प्राप्त हुयी। उक्त में 77 बंदियों की तथा 26 अधिकारी की कोरोना पॉजिटिव रिर्पोट आयी है। इस रिर्पोट के बाद तो इस बात पर चर्चा शुरू हो गयी है कि देश की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की जान पर घोर संकट है। कोरोना से इनको कैसे बचाया जाये। जेलों की क्षमता से अधिक निरूद्ध बंदियों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग भी संभव नही है। इस प्रकार तरह से विश्लेषण शुरू हो गये हैं। जेलों से सम्बन्धित सरकारों द्वारा कैदियों को बचाने के  लिये उन्हें पैरोल दिये जाने पर भी विचार किया जाने लगा है।
समूचे विश्व में फैली कोरोना महामारी की पहुंच अब हर जगह तक होती जा रही है। देश में करीब 50 दिन के लॉकडाउन के बाद भी कोरोना संक्रमण थामे नही थम रहा है। लॉकडाउन से सार्वजनिक स्थानों पर फैलने वाले कोरोना वायरस पर भले की औसतन काफी अंकुश लगा लिया हो पर जेलों में इसकी दस्तक ने सभी को तनाव में डाल दिया है। पहले आगरा के सेंट्रल जेल में एक सजा याफ्ता बंदी को कोरोना पॉजिटिव पाया गया जिसके बाद उसे उपचार के लिये मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। एक बंदी की रिर्पोट कोरोना पॉजिटिव मिलने से वहां के जेल प्रशासन सहित सरकार के हाथ पैर फल गये थे। जिस बाद समूचे आगरा पर विशेष ध्यान रखा गया। आगरा के बाद इंदौरा सेंट्रल जेल में भी इसी प्रकार की चौकाने वाली रिपोर्ट आयी जिसमें 4 बंदी कोरोना पॉजिटिव पाये गये थे। इंदौर प्रशासन ने अन्य बंदियों को संक्रमण से बचाने के उद्देश्य से उन चार संक्रमित बंदियों को इलाज के लिये हॉस्पिटल भेजा गया एवं उनके सम्पर्क  में आये करीब 79 बंदियों को अलग रखने की योजना बनायी। इसके तहत सरकारी कन्या छात्रावास असरबद को अस्थायी जेल के  रूप में बदला गया तथा उसी में इन्हें विस्थापित किया। अभी इंदौर का मामला ही कुछ नरम पड़ा था कि बीते दिवस मुम्बई स्थित आर्थर रोड जेल में एक साथ 103 लोगों की रिर्पोट कोरोना पॉजिटिव आ गयी। दरअसल यहां पर एक बीमार बंदी की जांच कराये जाने पर उसके सम्पर्क में आने वाले 200 सैम्पुल और जांच में भेजे गये। जो जेल अधिकारी एवं बंदियो के थे। इस रिपोर्ट में 77 बंदियों एवं 26 जेल अधिकारियों की कोरोना रिर्पोट पॉजिटिव मिलने से तो वहां एक तरह से हडकम्प मच गया। अब वहां और भी जो बंदी है उन सभी के टेस्ट कराये जा रहे हैं। देश में लगातार कोरोना के बढ़ते आंकड़ों से जेलों में बंद बंदी भी अपने को असुरक्षित मान रहे हैं। यही कारण है कि वह अपनी जान की सुरक्षा की मांग भी कर रहे हैं। अभी बीते दिनों पश्चिम बंगाल के ददमम सेंट्रल जेल एवं प्रेसीडेंसी जेल में बंदियों ने जिस तरह से बबाल काटा था उसकी भी खबर पूरे देश में प्रसारित हुयी। असल में वहां के कै दियों को भी कोरोना का भय सता रहा है। बंदियों ने जिस तरह से जेल में तोड़ फोड़ कर देश एवं सरकार का ध्यान अपनी ओर कराया वह सोचनीय है। अपनी जान की हिफाजत के लिये उनकी मांग जायज है पर तरीका गलत था। देश की जेलों पर आये कोरोना संकट ने तो केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों को गहराई से सोचने को मजबूर कर दिया। यहां तक की उच्चतम न्यायालय भी इसको लेकर गम्भीरता से सोच रहा है। जेलों कुछ श्रेणी बनाकर सात साल एवं उससे कम सजा वाले बंदियों को पैरोल पर छोड़े जाने की भी बात पर विचार हो रहा है इसके लिये न्यायालय द्वारा एक समिति का भी गठन कर दिया गया है।  
दरअसल हमारी जेलों की क्षमता एवं वहां निरूद्ध कैदियों की संख्या औसत से अधिक है। देश की ऐसी कोई जेल नही है जहां पर क्षमता के अनरूप ही बंदी रखे गये हों। यह स्थिती उन्हें कोरोना जैसे जानलेवा संक्रमण से बचाने के लिय ेकाफी परेशानी भरी है। क्योंकि अभी तक इस बीमारी की कोई वैक्सीन नही है केवल आत्म सुरक्षा एवं बचाव ही बीमारी से बचने का एक कारगर उपाय बताया गया है। सोशल डिस्टेंसिंग एवं मास्क को महत्वपूर्ण बताया गया है पर  जेलो में क्षमता से अधिक बंद बंदियों के बीच सोशल डिस्टेसिंग भी मुश्किल भरी होगी। तो फिर उनकी जान कैसी बचायी जाये यह भी चिंतनीय विषय है।  देश की सभी 1412 जेलों में बंद 49 लाख से अधिक बंदी इन जेलों में कैसे रह रहे हैं यह तो वही जाकर मालूम हो सकता है। सबसे बड़ी जेल कही जाने वाली दिल्ली की तिहाड़ जेल इसका सबसे बेहतर उदाहरण है जहां क्षमता 5200 बंदियों की है तथा वहां पर 12100 बदी आज बंद हैं। कमोवेश यही स्थिती देश की अन्य जेलों में भी है। मुम्बई की जिस आर्थर रोड जेल में कोरोना के 103 मामले आये उसकी क्षमता 800 कैदियों की है तथा वहां पर 2800 कैदियों के बंद हैं। इसी जेल में बीते दिनों एस बैंक के अध्यक्ष राणाक पूर भी बंद है। आर्थर रोड जेल में कोरोना के इतने ज्यादा संक्रमित मरीजों की संख्या के बाद तो राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार की नींद ही उड़ गयी तथा अपने अपने स्तर से जरूरी प्रयास में दोनो सरकारें दिमागी कसरत करने लगी। महाराष्ट्र सरकार ने तो प्रदेश की विभिन्न जेलों में  सात साल या उससे कम की सजा में बंद करीब 11000 बंदियों को पैरोल पर छोड़ने निर्णय लिया है। तो वही केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने महाराष्ट्र के 9 केन्द्रीय कारागार मुम्बई, ठाणे, खारधर, नासिक, पुणे, औरंगावाद, कलंबा, अमरावती, और नागपुर, में भारी भीड़ के कारण कैदियों को अन्यंत्र स्थानांतरित करने को कहा है। हालांकि गृह विभाग ने इन्हें पैरोल के आधार पर अंतरिम जमानत पर छोड़ने पर विचार किया है। इसके लिये एक समिति का गठन किया गया है। अन्य जेलों में बंद कैदियों को बचाने के  क्या प्रयास हों इस पर भी विचार करना जरूरी है। कोरोना संक्रमण को थामने के लिये देश में चल रहे लॉकडाउन के कारण सभी कोर्ट भी बंद हैं ऐसे में किसी भी तरह के विचाराधीन बंदी की जमानत प्रक्रियाओं पर भी कोई काम नही हो रहा है। बिना जमानत प्रक्रिया के बंदियों को जेल से उनकी जान बचाने को लेकर कै से बाहर किया जाये इसको लेकर इस समय कोर्ट एवं सरकारी मशीनरी के सामने कड़ी चुनौती है।