वाइन : लाइन के बाद आॅन लाइन 

कोरोना से देश को बचाने के लिये सरकार ने लॉकडाउन क्या किया शराब के शौकीन तो जैसे बेजान ही हो गये। बीते 40 दिन में उनकी दशा क्या रही होगी यह तो लॉकडाउन-3 के पहले दिन मिली छूट के दौरान दिख गयी। देश भर में शराब की दुकानों पर जिस तरीके की लम्बी लम्बी लाइन देखी जा रही हैं उससे तो यही लग रहा है उन्हें कोरोना की कोई वैक्सीन मिल गयी हो। कई स्थानों पर कोरोना का भय लोगों के आस पास नही दिखा तथा जमकर सोशल डिस्टेंसिंग की  धज्जियां उड़ायी गयी। शराब के शौकीनों के इस मदिरा प्रेम को देख कुछ सरकारों ने अपनी नीतियों में बदलाव कर होम डिलेवरी के माध्यम से उन तक पहुंचाने का निश्चिय कर लिया है तो कई जगह मौके को देख कीमतों में कोरोना फीस भी लगा दी गयी है। आपदा के इस दौर में देश के लोगों ने जिस तरीके का मदिरा मोह प्रदर्शित किया उसके चलते प्राचीन संस्कारों वाले इस देश की साख पर तरह तरह की चर्चायें हो रही हैं।
(सुधीर त्रिपाठी) ।


विविधताओं भरे इस देश में लोगों का रूझान कब किस ओर चला जाये इसे कहा नही जा सकता है। जनसंख्या में विश्व के दूसरे नम्बर पर आने वाले अपने देश में शराब के शौकीनों की संख्या ज्यादा होगी यह तथ्य हमेंशा कागजी आंकड़ों में छिपा रहा। लेकिन लॉकडाउन -3 के पहले दिन एवं उसके बाद भी जिस तरीके से देश के विभिन्न स्थानों पर लोगों का मदिरा मोह देखने को मिल रहा उससे तो यह लग रहा है लोगों की चिंता कोरोना से बचने के बजाय अपना हलक गीला करने की ज्यादा थी। शराब की दुकानों के बाहर 3-3 किमी की लाइनें आखिर क्या संदेश दे रही हैं यह हमें सोचने को मजबूर कर रही हैं। शराब पाने की होड़ और टूटती सोशल डिस्टेंसिंग के कारण छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार ने वाइन की आॅन लाइन बुकिंग करने एवं होम डिलेवरी करने की योऐरशजना बना ली है तो पंजाब सरकार भी इसी नक्शे कदम पर चलने की सोच रही है। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने 70 फीसदी कीमत पर इजाफा कर कोराना फीस लेनी शुरू कर दी। आखिर राजस्व वसूली के पीछे देश की तस्वीर क्या बन रही है इस पर किसी का ध्यान क्यों नही जा रहा है।
करीब 40 दिन के सम्पूर्ण लॉकडाउन के बाद 04 मई को जैसे ही लॉकडाउन-3 शुरू हुआ एवं इसमें कुछ रियायतें देकर देश को धीरे से चलाने का प्रयास किया गया। पूर्व नियोजन के तहत लिये गये फैसले पर पहले दिन देश भर की शराब की दुकानों एवं कुछ वाणिज्यिक संस्थानों को चालू किया गया। जैसे ही सुवह शराब के प्रतिष्ठान खुले तो एक के बाद एक लोगों की भीड़ आनी शुरू हो गयी। अभी महज एक घण्टा ही हुआ था कि जगह जगह पर शराब पाने को लेकर भारी भीड़ उमड़नी शुरू हो गयी एक के बाद स्थानों पर भीड़ का जमावड़ा देख दुकान संचालकों को पुलिस की मदद लेनी पड़ी। पहले एक -दो पुलिस कर्मी दुकानों के बाहर पहुंचे तथा लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग की सीख देकर दूरी बनाने के लिये कहा गया मगर उमड़ती भीड के  आगे सीमित पुलिस बल कई स्थानों पर असहाय सा हो गया तो बाद में और पुलिस बल मंगाना पड़ा। लेकिन उससे भी काम नही बना और कई जगह स्थिती खराब होने लगी तो कई जगहों पर दुकानों को बंद भी करा दिया गया। युवा हो यो प्रौढ़ अथवा वृद्ध तमाम जगहों पर देश भर में ऐसी तश्वीरें सामने आयी कि लोग शराब पाने को लेकर मशक्कत करने की स्थिती में दिखे। कई जगहों पर तो सुवह 6.30 बजे से ही लोग दोपहर में चिलचिलाती धूप में अपनी बारी आने का इंतजार करते देख गये। दिल्ली का करोलबाग हो या फिर जयपुर या लखनऊ सभी जगहों पर कुछ लोगों ने अधिक कीमतों पर भी शराब पाने की लालसा दिखायी। मदिरा की चाह के चलते देश भर में हुयी शराब बिक्री ने पहले दिन 700 करोड़ की बसूली की। तो अकेले उत्तर प्रदेश में 300 करोड़ रूपये की शराब बेची गयी। राजधानी लखनऊ में शराब के शौकीन लोगों ने 8 करोड़ से अधिक शराब खरीदी। जिस गति से शराब बिक रही है उससे तो लग रहा है कि कोरोना के दौर में शराब की बिकवाली के  नये कीर्तिमान बनेगें जो उत्तर प्रदेश के 2019-20 के 2500 क रोड़ की शराब के रिकार्ड को तोड़ देंगें देखा जाये तो नजारा पूरे देश काफी हास्यादपद एवं चिंताजनक सा था। लॉकडाउन के समय में इतनी भीड़ राशन को लेने के लिये भी गरीबों एवं असहायों की नही दिखी जबकि उनकी संख्या ज्यादा कही जा रही थी। देश भर के  उन प्रवासी मजदूरों को भी भोजन लेने के लिये इतनी बड़ी संख्या में उमड़ते हुये कही नही देखा गया जितना कि शराब को खरीदने वाले हर वर्ग लोग देखे गये। कुछ ने इसे अपने जीवन का अंग बताया तो कुछ ने इसे कोरोना के समय मस्ती का माध्यम। लेकिन वाइन शॉप के बाहर के नजारों से यह जरूर सामने आया कि लॉकडाउन की लम्बी अवधि के बाद भी घर का बजट अभी संतुलन में है। लेकिन कोरोना से जूझ रहे इस देश में भीड़ तंत्र ने बेपरवाह जो नजारा दिखाया उससे इस देश के भविष्य की चिंता जरूर हो गयी है। कि आखिर हम यह कर क्या रहे हैं। जहां जान बचाने के लिये बीते 40 दिनों से सरकार जनता को घरों में बैठाये हुये थी वहां लोगों ने अपनी जान की परवाह किये बगैर एक ऐसे शौक के लिये अपने जीवन को खतरे में डाल दिया जो शौक महज कुछ घंटों तक ही आपको आनंदित कर सकता है। लोग वाइन लेने के लिये यह भी समझ रहे कि इस भीड़ में क ही कोई कोरोना संक्रमित तो नही है जिससे उनका जीवन संकट में पड़ जाये। लोग बिना किसी डर के भीड़ का अंग बन कर केवल शराब को ही अपना जीवन मान रहे हैं। राजस्व की आमद करने के उद्देश्य शुरू की गयी वाइन शॉप पर खरीददारों की संख्या तो देख विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने अपने तरीकों से इस पर नयी नयी नीतियां बनानी शुरू कर दी हैं। सबसे ज्यादा चिंता शराब के शौकीनों की छत्तीसगढ़ सरकार को दिख रही है जिसके चलते उन्होने शराब की आॅन लाइन बुकिंग करने एवं होमडिलेवरी करने को निर्णय लिया है। इस होम डिलेवरी में वो कीमत के अलवा अतिरिक्त डिलेवरी चार्ज भी बसूलेंगे जो 150 रूपये प्रति डिलवेरी बताया जा रहा है। तो वही पंजाब सरकार भी इस नक्शे कदम पर चलने की सोच रही है। दिल्ली सरकार ने भीड़ को देख 70 फीसदी का इजाफा कर दिया है तो कई और सरकारें भी शराब की कीमतों में वृद्धि करने जा रही हैं। कुल मिलाकर राजस्व आये भले ही उसकी कीमत कुछ भी हो। बाद में  हालात बिगड़ने पर उस राजस्व से अधिक व्यवस्थाओं पर खर्च हो जाये। लॉकडाउन में छूट के प्राविधान के लिये सबसे पहले वाइन शॉप को ही लिया जाना इस समय सवालों के घेरे में है। भला हो सोचने वालों का एवं उनका जो नीतियों के क्रियान्वयन में मुख्य रूप से शामिल रहते हैं। इधर सम्पूर्ण लॉकडाउन के बाद जो सुखदपूर्ण स्थिती बनी थी वो इस उमड़ी भीड़ ने एक तरह से तहस नहस सा कर दिया। जिसके परिणाम तो बाद में ही आयेंगे। इस स्थिती को उत्पन्न करने के पीछे यदि सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाये तो गलत ना होगा। आखिर यह कल्पना क्यों नही की गयी कि यह स्थिती भी बन सकती है। जब सरकार ने मॉल एवं बड़े कर्मिशयल स्थानों को महज भीड़ के कारण ही अभी नही खोला तो फिर इस पर विचार क्यों नही किया गया। 
यह सही है कि आवकारी माध्यम राजस्व  एकत्रित करने का बड़ा माध्यम है मगर यह भी सोचा जाना चाहिये कि अभी हमें भीड़ की संस्कृति से बचना होगा। अभी हम कोरोना मुक्त नही हो गये। आज की स्थिती में हम बुरी तरह से फंसे हैं। देश भर में 47000 के करीब कोरोना मरीज हो गये हैं। इसकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। हमारे पास केवल बचाव ही एक मात्र रास्ता है इसे कई बार प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं इसके बाद  भी हम भीड़ वाले तंत्र पर  ही विश्वास कर रहे हैं। माना कि कु छ निर्णय कभी ऐेसे हो जाते हैं जिनके परिणाम सुखद नही आते ऐसे में उन निर्णयों की समीक्षा भी होनी चाहिये तथा समीक्षा के बाद परिस्थितियों के अनुरूप देश हित में नये निर्णय लिये जाने चाहिये।